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Punitive Retrenchment In absence of Departmental Regular Enquiry Violate Provision of Industrial Dispute Act

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Punitive Retrenchment Without Regular Departmental Inquiry Violates Industrial Disputes Act: HP HC Labour Court's finding that termination based on alleged misconduct without conducting a proper departmental inquiry was illegal. Firstly, the court noted that the retrenchment notice dated February 26, 1999, mentioned that Ramesh Chand had been found guilty of tampering official records with malafide intention. It observed that this finding was based only on the preliminary inquiry and his own admission of guilt. Thus, the court ruled that the termination was entirely rooted in the preliminary inquiry itself.  Secondly, the court referred to Section 25-F and Section 2(oo) of the Industrial Disputes Act. It noted that the provisions define “retrenchment” as termination for any reason whatsoever, “otherwise than as a punishment inflicted by way of disciplinary action.” The court also observed that an FIR had been registered against Ramesh Chand regarding the same allegations, but he wa...

RERA vs Real Estate

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  *क्या रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट (RERA), जिसे 2016 में होम बायर्स को बचाने के लिए लाया गया था, वाकई कारगर साबित हुआ है? और सुप्रीम कोर्ट इस संकट को सुलझाने में कितना कामयाब रहा है?*  विज्ञापनों में चमचमाते टावर, हरियाली से भरे पार्क और बच्चों के लिए प्ले एरिया देखकर लोग सपने संजो लेते हैं. बेहतर जिंदगी की चाहत में लोग जीवन भर की कमाई रियल एस्टेट कंपनी को दे देते हैं. फिर शुरू होता है इंतजार, सालों इंतजार के बाद वो न घर के मालिक बन पाते हैं न उनकी जमा पूंजी उनके पास बचती है.  लाखों होम बायर्स आज अपने सपनों के मलबे में दबे हुए हैं. कभी आसमान छूने वाली रियल एस्टेट कंपनियां जैसे आम्रपाली और अंसल उनकी उम्मीदों को कुचलकर धूल में मिल गईं. हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि अगर बिल्डर को होम बायर्स से पैसा नहीं मिला, तब भी वो रिफंड के लिए जिम्मेदार है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि बिल्डरों की जवाबदेही तय करना जरूरी है, ताकि होम बायर्स का भरोसा बहाल हो सके. For More update…. @RERA ACT – Real Estate

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 144 का उद्देश्य उन व्यक्तियों की भरण-पोषण की आवश्यकताओं को सुनिश्चित करना है, जो स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।

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  धारा 144 (1): भरण-पोषण का आदेश (Order of Maintenance)  भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हो गई है, के अध्याय X में पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के आदेशों से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। इस अध्याय की धारा 144 उन व्यक्तियों पर लागू होती है जो पर्याप्त साधन होने के बावजूद अपने परिवार के भरण-पोषण का दायित्व निभाने में विफल रहते हैं।  इस धारा के अंतर्गत, प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को ऐसे व्यक्ति को भरण-पोषण का आदेश देने का अधिकार दिया गया है।  भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 144 का उद्देश्य उन व्यक्तियों की भरण-पोषण की आवश्यकताओं को सुनिश्चित करना है, जो स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। यह धारा विशेष रूप से उन मामलों में सहायक है जहां पति, पिता या पुत्र अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं। इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया है कि वह ऐसे व्यक्तियों को भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश दे और इस आदेश का पालन न करने पर आवश्यक दंड का प्रावधान करें।  इस लेख में हम धारा 144 के प्रावधानों का सरल भाषा में विस्तृत...

सात फेरे नहीं हुए तो हिन्दू विवाह वैध नहीं माना गया Hindu Marriage Invalid If Requisite Ceremonies Not Performed, Registration Won't Make Such A Marriage Legitimate : Supreme Court

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हिंदू विवाह अवैध है यदि आवश्यक रस्में नहीं निभाई गईं, पंजीकरण से ऐसा विवाह वैध नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट Hindu Marriage Invalid If Requisite Ceremonies Not Performed, Registration Won't Make Such A Marriage Legitimate : Supreme Court. In a recent ruling, the Supreme Court clarified the legal requirements and sanctity of Hindu marriages under the Hindu Marriage Act 1955. The Court emphasized that for a Hindu marriage to be valid, it must be performed with the appropriate rites and ceremonies, such as saptapadi (seven steps around the sacred fire) if included, and proof of these ceremonies is essential. New Delhi: Registration of a marriage under the Hindu Marriage Act, 1955 (HMA) will not confer any marital status to a couple unless their union is solemnised according to the rituals mentioned under the law, the Supreme Court has ruled. A bench led by Justice B.V. Nagarathna emphasised the “material and spiritual” aspects of a marriage under HMA to postulate that merely getting a cert...

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का “निकाह” और “तलाक” पर बड़ा फैसला

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 द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार के अनुसार, यह फैसला जस्टिस अतहर मिनुल्लाह ने लिखा था. तलाक के बाद एक महिला ने निकाहनामे में निर्धारित शर्तों के तहत दहेज और अन्य वस्तुओं की वापसी के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.कोर्ट के मुताबिक, निकाहनामा एक इस्लामी विवाह अनुबंध है, जिसपर दोनों के हस्ताक्षर किए जाते हैं. मामला उच्च न्यायालय पहुंचा तो महिला को निकाहनामे के कॉलम नंबर 17 में दर्ज जमीन का एक टुकड़ा दे दिया गया था.उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ दूसरे पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और कहा कि भूमि के टुकड़े का उद्देश्य यह था कि वहां एक घर बनाया जाएगा और जब तक शादी रहेगी, तब तक महिला वहां रह सकती है| जस्टिस अमीनुद्दीन खान और जस्टिस अतहर मिनुल्लाह की 2 सदस्यीय पीठ ने तलाक से संबंधित एक अपील पर 10 पन्नों का विस्तृत फैसला सुनाया. फैसले में कोर्ट ने कहा है कि पुरुष-प्रधान समाज में नियम और शर्त आम तौर पर पुरुषों की तरफ से तय की जाती है. अगर किसी और ने दुल्हन से बात किए बिना निकाहनामे के कॉलम भर दिए तो इसका इस्तेमाल दुल्हन के हित के खिलाफ नहीं किया जा सकता है.पाकिस्‍तानी अखबार के मुताबिक, स...

पासपोर्ट नवीनीकरण की दी अनुमति "विदेश यात्रा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है" इलाहाबाद हाईकोर्ट

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हाल ही में , इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विदेश यात्रा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति शमीम अहमद की पीठ आवेदक सपना चौधरी को पासपोर्ट जारी करने की अनुमति / अनापत्ति देने के लिए दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले में, प्रतिवादी संख्या 2 (उप-निरीक्षक) ने आवेदक और अन्य के खिलाफ शिकायत/आवेदन दर्ज कराया। धारा 406/420 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।  पीठ ने मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले का हवाला दिया, जहां शीर्ष अदालत ने कहा था कि पासपोर्ट रखना भारत के नागरिक का मौलिक अधिकार है और किसी नागरिक को इस तरह के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि विदेश यात्रा का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 (1) (जी) के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक हिस्सा है और इसके अलावा पासपोर्ट अधिनियम और अधिसूचना दिनांक के प्रावधानों को ध्यान से पढ़ें। 25.08.1993 के कार्यालय ज्ञापन दिनांक 10.10.2019 के साथ, यह स्पष्ट है कि मुकदमे का सामना कर रहे किसी व्यक्ति का पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज उसके आपराधिक मामले की लं...

व्हाट्सएप और ईमेल द्वारा नोटिस की सेवा को पर्याप्त सेवा माना है : दिल्ली उच्च न्यायालय

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि व्हाट्सएप और ईमेल द्वारा नोटिस की सेवा पर्याप्त है। न्यायालय ने यह निर्णय उस मामले में दिया, जहां याचिकाकर्ता ने "लीज एग्रीमेंट" नामक एक समझौते के तहत पक्षों के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत एक याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कहा, “हालांकि ईमेल और व्हाट्सएप द्वारा सेवा पर्याप्त है, यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि समझौते में, पत्राचार के प्रयोजनों के लिए प्रतिवादी का पता, क्लॉज 10.3 में प्रदान किया गया है, वह पता है जिस पर सेवा का प्रयास किया गया है. बताया गया था कि मध्यस्थता का आह्वान करने वाला नोटिस उसी पते पर भेजा गया था, लेकिन स्पीड पोस्ट रिपोर्ट में, जिस पते पर याचिका भेजी गई थी, उसमें कहा गया है कि ऐसा कोई व्यक्ति उस पते पर उपलब्ध नहीं है।   संक्षिप्त तथ्य- याचिकाकर्ता, एम/एस लीज प्लान इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और प्रतिवादी एम/एस रुद्राक्ष फार्मा वितरक और अन्य। एक साझेदारी फर्म ने वाहनों के पट्टे के लिए एक समझौता किया। समझौते में एक...